एक स्वस्थ देश के निर्माण की राह में नागरिकों का मोटापा किस कदर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिंतित कर रहा है, उसकी बानगी आकाशवाणी पर हर माह के अंतिम रविवार को प्रसारित होने वाले उनके कार्यक्रम 'मन की बात' की ताज़ा कड़ी में देखने को मिली। मोदी ने बताया कि विश्व भर के 250 करोड़ लोग मोटापे से जूझ रहे हैं और भारत में हर आठवां नागरिक मोटे लोगों की श्रेणी में आता है। यह समस्या बच्चों में भी बढ़ रही है और हाल के वर्षों में मोटापे की बीमारी चार गुना बढ़ गयी है। मोटापे के कारण हृदय रोग, तनाव, मधुमेह जैसी होने वाली कई बीमारियों का उल्लेख करते हुए मोदी ने लोगों को आगाह किया और इनसे बचने की सलाह दी। इसके लिये पीएम ने तेल की खपत 10 प्रतिशत घटाने का आग्रह देशवासियों से तो किया ही, दस नामी-गिरामी हस्तियों को इस अभियान से जोड़ा जो मोटापे को समाप्त करने की श्रृंखला के प्रारम्भिक व्यक्ति होंगे।
जिस प्रकार से व्यायाम का नाम लेने मात्र से, साल में एक बार योग दिवस मना लेने अथवा जिम की सदस्यता लेने मात्र से कोई स्वस्थ और छरहरा नहीं हो जाता, वैसे ही मोटापे की बीमारी का जिक्र करने मात्र से किसी का वजन घट जाने वाला नहीं है, लेकिन मोदी की यह फितरत है; और उनकी गलतफ़हमी भी कि उनके उल्लेख करने मात्र से किसी समस्या का निदान हो जायेगा तथा लोग उनके रेडियो कार्यक्रम के पूरा होते ही वजन घटाने में लग जायेंगे। अगर ऐसा होता तो आज कम से कम पूरा भारत रोजाना नियमित तौर पर योगाभ्यास करता हुआ दिखता जिसकी शुरुआत स्वयं मोदीजी के प्रयासों से हुई थी। उन्हीं के आग्रह से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को निर्धारित किया था। हर वर्ष योग दिवस के अवसर पर जिस प्रकार से कार्यक्रम होते हैं, उससे साफ दिखता है कि एक दशक की इस कथित योग यात्रा के बाद भी ज्यादातर भारतीय योगासनों से अपरिचित हैं और उन्हें करने के नितांत नाकाबिल। विशेषकर, इन कार्यक्रमों में शामिल होने वाले नेता, मंत्री, अधिकारी, उद्योगपति, व्यवसायी आदि जो शोशेबाजी के चलते योग के कार्यक्रमों में शामिल तो हो जाते हैं लेकिन उनके थोड़ा सा हाथ-पांव हिलाते ही पता चल जाता है कि यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा नहीं है।
इसमें कोई शक नहीं कि मोटापा एक वैश्विक समस्या है और भारतीयों में भी इससे प्रभावितों की संख्या में बड़ा इज़ाफ़ा हुआ है। ऐसा भी नहीं कि मोदी ने कोई गलत विषय उठाया हो। यहां सिर्फ ध्यान में लाया जाना ज़रूरी है कि इवेंट बनाने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो जाता। यदि मोटापे को खत्म करने के प्रति प्रधानमंत्री वाकई बहुत गम्भीर हैं तो उन्हें इसे लेकर विशेषज्ञों तथा चिकित्सा वैज्ञानिकों से पहले बात कर एक ठोस योजना लानी चाहिये। यह कम से कम रेडियो कार्यक्रम का हिस्सा तो नहीं हो सकता क्योंकि इस प्रसारण को लोग अब राजनीतिक नज़रिये से देखने लगे हैं। जिस प्रकार से इसे सुनने के लिये उनकी भारतीय जनता पार्टी व सरकारें श्रवण कार्यक्रम आयोजित करती हैं तथा बाद में उसका प्रकाशन व प्रसारण एक सुनियोजित तरीके से मोदी की छवि निखारने के लिये होता है, उससे लोगों के मन में वितृष्णा सी हो गयी है। तमाम विषयों पर किसी विशेषज्ञ सी राय देने वाले मोदी के ये प्रवचननुमा उद्बोधन लोगों पर कोई असर नहीं डालते। यदि इन रेडियो कार्यक्रमों में इतना ही दम होता तो आज भारत की सारी समस्याओं को रेडियो प्रसारणों के जरिये उखाड़ कर फेंका जा चुका होता।
बहरहाल, मोटापे का सम्बन्ध केवल तेल का प्रयोग नहीं वरन जीवन शैली से और आनुवांशिकी दोष से भी है। बेशक, तेल भी एक कारण है लेकिन समस्या केवल 10 प्रतिशत मात्रा घटाने से समाप्त नहीं होगी। पहली बात तो है लोगों के जीवन स्तर को सुधारना जिसके अंतर्गत खान-पान की गुणवत्ता सुधारनी प्राथमिक ज़रूरत है। विशेषज्ञों के अनुसार एक ही तरह का तेल लम्बे समय तक इस्तेमाल में लाना गलत है। मात्रा घटाने के साथ ही अलग-अलग तरह के तेलों का इस्तेमाल होना आदर्श माना जाता है लेकिन जिस देश में 85 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देना राष्ट्रीय गर्व का विषय हो तथा उसका उल्लेख एक महान उपलब्धि के रूप में होता हो, वहां इन लोगों के पास खान-पान सम्बन्धी कितने विकल्प हो सकते हैं, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। खुद मोदी के आने के बाद सभी तरह के खाद्य पदार्थों की कीमत बेतरह बढ़ी है जिनमें तेल भी शामिल है। आज एक आम भारतीय को सबसे सस्ता तेल खरीदना पड़ता है, यह जानते हुए भी कि उसमें मिलावट है। घटिया और महंगा सामान बनाने का लाइसेंस आज उद्योगपतियों व व्यवसायियों को भाजपा के पक्ष में इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदकर या चंदा देकर मिल ही चुका है।
अच्छे खान-पान का सम्बन्ध लोगों की आय से भी है। जब तक लोगों के पास आय के अच्छे व स्थायी स्रोत न होंगे, भोजन सम्बन्धी ये प्रयोग लोगों तक न तो पहुंचेंगे, न ही वे आजमाये जा सकेंगे। अलबत्ता कुछ खाये-पिये अघाये लोग इस तरह के प्रयोग पहले से करते आ रहे हैं जिसके अंतर्गत वे रिफाइंड शक्कर व सफेद चावल की जगह क्रमश: ब्राउन शूगर व ब्राउन राइस खाते हैं, सफेद की बजाये सेंधा नमक खाते हैं और बेहद महंगा जैतून तेल खाते हैं। देश के नागरिकों की वास्तविक स्थिति से नितांत अनभिज्ञ मोदीजी समझते हैं कि 'मन की बात' से देश से मोटापे की समस्या छूमंतर हो जायेगी। भला ऐसा कहीं होता है क्या?